सामंजस (हिन्दी कविता)

सामंजस (हिन्दी कविता)

काश्यप कमल

2 जनवरी 2023 

 


 लहरों के आवेग को 

काबू में करके रखा लेना 

शब्द बाण से बचने को

पाषाण आवरण ओढ़े रहना

घूँट कड़वे कितने भी हो 

भावहीन बन, भींचकर मुट्ठी 

अमृत मान हलाहल को 

गट-गट कर पीते रहना।

गट-गट कर पीते रहना।।


छितराए सपनों का क्या ? 

यथार्थवश हीन रहूँ भी तो क्या?

निजताबोधक 'मूल' पर

बार-बार हो आघात ही तो क्या?

इन सब को अपने पीठ आगे कर झेलते रहना

तथागत भाव का रक्षक बन 

अमृत मान हलाहल को 

गट-गट कर पीते रहना।

गट-गट कर पीते रहना।।


2

सुनो ! 

ठहरो ! 

एक पल के लिए ! 

रुको,  बांध लो गांठ!!

बात हमेशा गाँठ में बांधकर रखना 

अपने संयम को समर्पित 

आस्थाओं को कर एकत्रित

रच कर नव पथ,

नियति को कर समर्पित 

सब मूल्य चुकाते है रहना 

कर्मठता से नियति को भी 

स्वीकार भाव मे है लाकर रखना 

फिर न घाटे का सौदा लगेगा 

एक अदद "इमोजी" पर, घंटों दर्द से छटपटाते रहना।।

एक अदद "इमोजी" पर, घंटों दर्द से छटपटाते रहना।।

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