नव निर्माण
काश्यप कमल
27/07/2022
प्रवेश खोटेपन का जीवन में,
हठात यूं ही तो नहीं हुआ
स्वभाव के प्रतिकूल दबाब मन पर
सहन सीमा का होना अतिक्रमण
भोगा है मैंने।
देखा भी है
आईने में खुद के अक्स का
लोगों का रूप शृंगार करते ही जाना
कितना मनन करूँ ?
कारणों का निरंतर अनुभव होते रहना
स्वाभाविक है
मन की सीमा का इस अतिक्रमण से चित्कार उठना
उस अपेक्षित बोझ को पटक,
नव निर्माण मैंने चुन लिया
और
तारीख के जद्दोजहद में,
फैसला भी जुनूनी ही हो गया
अंदाज़े बयां में केवल,
मन का सुनना लाजिमी हो गया।
केवल, मन का सुनना लाजिमी हो गया ....
* फोटो साभार - इन्टरनेट
Nice
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