काश्यप कमल
22 मई 2023
हर रात सोता हूँ
उम्मीद का तकिया लेकर
शीतल, सौम्यता, स्नेह से सरोवर करने
उदय होगा दिनकर का
उम्मीदों पर खड़ा उतरेगा
छूट गया जो समयचक्र में फँसकर
तिरस्कृत रहा हूँ जिसके लिए
उन तिरस्कारों को कर परिष्कृत
मनोबांछित धुप सहित सूरज खिलेगा
परन्तु
अर्जी को नियति ने नामंज़ूर कर
रचा व्यूह काल को लेकर साथ
उषा हुई और जागे दिनकर
प्रचंड तेज लिए
जेठ की तप्त किरणों के साथ
सुलगना मद्धिम-मद्धिम
सूरज से संघर्ष को उद्धृत
लौह दहन ज्वाला अंदर-अंदर
सोच लिया कि
स्व को भस्माकार करूँ
नैसर्गिकता को घिसकर
बना लूँ योग्य
मूलता, निजता पुरुषत्व
का आहूत देकर
स्वाभाविकता,प्राकृतिकता
खत्म करूँ यह पुरुषत्वता
बन जाऊं अंदर से नि:सार
रंगहीन, गंधहीन स्पंदनहीन
मनोनुकूल भावहीन, सामर्थ्यहीन
शक्तिहीन बन ढोने को तैयार
अपने आस्थाओं के अधूरेपन को
स्व पीड़ा जनित छटपटाहट
सौ प्रसव वेदना सहने को तैयार
एकमात्र आस
सेवक शिरोमणि बन सकूं
और उतर सकूं आपके कसौटी पर
चाहकर भी पार ना कर सकूं लक्ष्मण रेखा
खींचा जा रहा जो विधी-व्यवस्था बनकर
सम-विषम होती इस इस रेखा को
किसी लक्ष्मण ने नहीं है खींचा
आपकी उधार की स्याही लेकर
मर्यादा उस पुरुषोत्तम का कर समाहित
सूर्पनखा स्वयं की कुंठा से है सींचा
माता ने भी शिव को चेताया था
कुंठित ही सही पर
मर्यादा है इसमे पुरुषोत्तम की
जिसे कायम रखने को
अर्धनारीश्वर स्वरूप त्याग को तत्पर
शिव भी बंधन में बंध गए
और
रक्षार्थ लिया पिनाक धनु धर
चाहे कसमटाहट की तीब्र आहट हो
प्रेम-स्वच्छन्दनता की पराकाष्टा हो
जो त्याग चुका
उसकी परवाह छोड़
केवल और केवल
आदेश पालन को तैयार
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